2026 में होने जा रहे लोकसभा सीटों के परिसीमन के कारण दक्षिण भारत के पांच राज्यों का गुट तैयार हो रहा है,जो इस मसले पर केंद्र सरकार से आर-पार के मूड में नजर आ रहा है। केंद्र सरकार भी नए संसद भवन में 888 लोकसभा सदस्यों के लिए जगह बनाकर पहले ही स्पष्ट संकेत दे चुकी है।
संविधान के आर्टिकल 82 में यह व्यवस्था है कि हर जनगणना के बाद लोकसभा में राज्यों के लिए सीटों का आवंटन और उन सीटों का टेरिटोरियल डिविजन नए सिरे से किया जाएगा, हालांकि संविधान के इस अनुच्छेद में यह निर्धारित नहीं है कि किसी राज्य में लोकसभा में सीटों के आवंटन का आधार क्या होगा।
संविधान ने इस आधार को तय करने का अधिकार संसद पर छोड़ दिया और संसद ने यह आवंटन राज्यों की जनसंख्या के आधार पर किया। इसके लिए परिसीमन आयोग बनाया जाता है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश, चुनाव आयोग और राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि होते हैं।
1951 की जनगणना में देश की आबादी 36.1 करोड़ थी, जिसके आधार पर लोकसभा में 494 सीटें तय की गई। 1961 की जनगणना में देश की आबादी 43.9 करोड़ हो गई, जिसके आधार पर लोकसभा की सीटों की संख्या बढ़ा कर 522 कर दी गई। 1971 की जनगणना में आबादी 54.8 करोड़ हो गई, जिसके आधार पर लोकसभा में सीटों की संख्या 543 कर दी गई।
दक्षिण भारत के राज्यों की चिंता
1971 तक आते-आते यह साफ हो गया कि दक्षिण भारत के राज्यों की आबादी स्थिर हो रही थी, जबकि उत्तर भारत के राज्यों की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही थी और इसे कुछ एक्सपर्ट्स ने 'जनसंख्या विस्फोट' का नाम दिया। अब दक्षिण भारत के राज्यों के नेताओं की बेचैनी बढ़ने लगी, क्योंकि उन्हें लग रहा था कि यही होता रहा तो राष्ट्रीय राजनीति में वह बेमानी हो जाएंगे।
उनकी बेचैनी को समझ कर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी के दौरान 42 वां संविधान संशोधन कर इस परिसीमन को अगले 25 साल के लिए फ्रीज कर दिया । तब यह कहा गया कि इन सालों में उत्तर भारत के राज्य फैमिली प्लानिंग पर तवज्ज़ो देंगे, लेकिन उन राज्यों की आबादी में तेजी से इज़ाफा होता रहा और हुआ यह है सरकारों ने भी फैमिली प्लानिंग का प्रचार बंद कर इसे अपनी प्राथमिकताओं से रूख़सत ही कर दिया।
25 साल का यह फ्रीज साल 2001 में समाप्त हो गया तो वाजपेयी सरकार ने इसे और 25 साल के लिए बढ़ाते हुए कहा कि अभी इसे हटाने का मुनासिब वक्त नहीं आया है। यह सीमा 2026 में खत्म हो जाएगी और हालांकि राजनीति में कुछ भी निश्चित नहीं होता, लेकिन यह लगभग निश्चित है कि मोदी सरकार इस फ्रीज को आगे नहीं बढ़ाएगी ।
केंद्र सरकार जनगणना को, जो 2021 में कोविड के कारण नहीं हो पाई थी, उसे इस साल शुरू कर अगले साल मुकम्मल करेगी और इसके आंकड़ों के आधार पर परिसीमन आयोग बनाकर अगले साल लोकसभा सीटों का परिसीमन करेगी और 2029 के आम चुनाव नए परिसीमन के आधार पर होंगे, जिनमें महिला सीटों का आरक्षण भी होगा।
परिसीमन के बाद बीजेपी के हावी होने का डर
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन के अलावा कर्नाटक, केरल और तेलंगाना के मुख्यमंत्री भी अब खुलकर इस परिसीमन के विरोध में आ गए हैं, जबकि आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू, जोकि केंद्र सरकार के सहयोगी हैं, भी अपने राज्य में ज्यादा बच्चे पैदा करने पर आर्थिक सहायता देने की बात कह कर इसी मसले को रेखांकित कर चुके हैं।
इन सभी का कहना है कि आबादी के आधार पर परिसीमन हुआ तो उत्तर भारत के हिंदी भाषी राज्यों की सीटें ज्यादा बढ़ जाएंगी और बीजेपी केंद्र में हावी हो जाएगी। अब सवाल यह है कि 2025 की जनगणना का अनुमान लगाया जाए तो किस राज्य की कितनी सीटें कम होंगी और कितनी बढ़ेंगी:-
राज्य | कितनी सीटें बढ़ सकती हैं | कितनी सीटें घट सकती हैं |
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उत्तर प्रदेश | 11 | - |
बिहार | 10 | - |
राजस्थान | 06 | - |
तमिलनाडु | - | 08 |
आंध्र प्रदेश | - | 08 |
कर्नाटक | - | 02 |
केरल | - | 08 |
हालांकि गृह मंत्री अमित शाह ने स्टालिन के आरोप का जवाब देते हुए ऐलान किया है कि दक्षिण के राज्यों की एक भी सीट कम नहीं होगी, लेकिन दक्षिण के राज्य इससे संतुष्ट नहीं हैं।
लोकसभा सीटों को सीटों को प्रो-रेटा के आधार पर बढ़ाने की मांग
इन सभी का कहना है कि आबादी के आधार पर परिसीमन हुआ तो उत्तर भारत के हिंदी भाषी राज्यों की सीटें ज्यादा बढ़ जाएंगी और बीजेपी केंद्र में हावी हो जाएगी। अब सवाल यह है कि 2025 की जनगणना का अनुमान लगाया जाए तो किस राज्य की कितनी सीटें कम होंगी और कितनी बढ़ेंगी:-
तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने कहा है कि अगर दक्षिण की एक भी सीट कम नहीं होगी और उत्तर भारत के राज्यों की सीटें बढ़ेंगी तो उससे भी नुकसान दक्षिण का ही होगा। उनका कहना है कि या तो परिसीमन का आधार 1971 की जनगणना को ही रखा जाए या सीटों को प्रो-रेटा के आधार पर बढ़ाया जाए यानी हर राज्य की सीटें आबादी के आधार पर ना बढ़ा कर कुछ तय फीसद बढ़ा दी जाएं, जिससे कि सबको समानता मिले।
अभी तक यह तय नहीं हुआ है कि परिसीमन किस आधार पर होगा। इसे परिसीमन आयोग तय करेगा, लेकिन इतना तय है कि अगर इसे प्रत्येक ‘20 लाख की आबादी पर एक सांसद’ के आधार पर तय किया गया तो सीटों की संख्या का प्लस-माइनस कमोबेश उपरोक्त टेबल के आधार पर होगा, जिससे दक्षिण के राज्य निश्चित ही केंद्र की राजनीति में अप्रांसगिक हो जाएंगे।
उनका कहना है कि उन्हें पॉपुलेशन कंट्रोल की सजा नहीं दी जा सकती। यह गौरतलब है कि यह तर्क वही लोग दे रहे हैं जो जातिगत आरक्षण के लिए ‘जिसकी जितनी आबादी, उसकी उतनी हिस्सेदारी’ का नारा देते हैं, क्योंकि वह उन्हें फायदेमंद नजर आता है। अब देखना है कि केंद्र सरकार इस जटिल समस्या से कैसे निपटती है, लेकिन एक बात साफ नजर आ रही है कि मोदी सरकार इंदिरा गांधी या वाजपेयी सरकार की तरह इसे टालने के मूड में बिल्कुल नहीं है।
पंकज त्यागी
pankajtyagi2021@gmail.com
लेखक दिल्ली हाईकोर्ट में एडवोकेट हैं ।