जम्मू-कश्मीर: सनातन ज्ञान, विज्ञान, दर्शन, संस्कृति और अध्यात्म की पुण्यभूमि

Authored By: News Corridors Desk | 19 Jun 2025, 04:54 PM
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सनातन जम्मू-कश्मीर मात्र भौगोलिक दृष्टि से भारत का मुकुटमणि नहीं है, अपितु यह भारतीय सनातन संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान, दर्शन, सौंदर्यशास्त्र, शिक्षा, और अध्यात्म की भी उद्गम स्थली रही है। यहाँ हिमगिरि की शीतल छाया में ऋषि-मुनियों ने तप किया, शास्त्रों की रचना की, सौंदर्य का चिंतन किया और सनातन धर्म के गूढ़ रहस्यों का उद्घाटन किया।

यह भूमि न केवल भौतिक सौंदर्य से भरपूर है, बल्कि आत्मिक ऊर्ध्वगति का भी पावन केन्द्र रही है।

1. ऋषि कश्यप और जम्मू-कश्मीर का उद्भव

ऋषि कश्यप को कश्मीर प्रदेश का आदि संस्थापक माना जाता है। नीलमत पुराण तथा राजतरंगिणी जैसे ग्रंथों के अनुसार, कश्मीर कभी विशाल सरोवर (सति सर) था जिसे ऋषि कश्यप ने अपने तपबल से जलमुक्त कर, बसने योग्य भूमि बनाया।

2. शारदा देवी: विद्या और ज्ञान की अधिष्ठात्री

कश्मीर का "शारदा पीठ" भारतीय उपमहाद्वीप के प्रमुख विद्या पीठों में रहा।
शारदा देवी को "विद्या की देवी" माना गया, और शारदा पीठ को "पूर्व का ऑक्सफोर्ड" कहा जाता था। यहाँ भारत भर से विद्यार्थी, विद्वान, तत्त्वज्ञानी शास्त्रार्थ हेतु आते थे।

3. माँ वैष्णो देवी: भक्ति और साधना की धुरी

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त्रिकूट पर्वत पर स्थित वैष्णो देवी का मंदिर आज भी सनातन साधना परम्परा का एक जीवंत केन्द्र है। मान्यता है कि माँ ने महायोगी गोरखनाथ और भैरवनाथ को भी अपनी शक्ति से पराजित कर सनातन धर्म की रक्षा की।

दार्शनिक परंपरा और आचार्य

4. उत्पलदेव (900 ई.) — प्रत्यभिज्ञा दर्शन के प्रवर्तक

उत्पलदेव ने "ईश्वर प्रत्यभिज्ञा" सिद्धांत प्रतिपादित किया, जिसमें मोक्ष को आत्मा की परम शिवस्वरूपता की पुनः स्मृति बताया गया।
मुख्य ग्रन्थ: ईश्वरप्रत्यभिज्ञाकारिका

5. अभिनवगुप्त (950–1020 ई.) — तंत्रालोक और कश्मीर शैवदर्शन के विश्वविख्यात मनीषी

अभिनवगुप्त एक महान दार्शनिक, तन्त्राचार्य, कवि और नाट्यशास्त्र के टीकाकार थे।
तंत्रालोक में उन्होंने समग्र तन्त्रशास्त्र का विवेचन किया।
अभिनवभारती में उन्होंने नाट्यशास्त्र की श्रेष्ठतम व्याख्या प्रस्तुत की, जिसमें रस सिद्धान्त का गहन विवेचन मिलता है।
संदर्भ: तंत्रालोक (अभिनवगुप्त); अभिनवभारती (भरतमुनि के नाट्यशास्त्र पर टीका)

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कुछ परम्पराओं के अनुसार भरतमुनि, जिन्होंने नाट्यशास्त्र (रस-सिद्धांत का मूल ग्रंथ) की रचना की, का जन्म क्षेत्र भी कश्मीर माना जाता है (यद्यपि इस पर ऐतिहासिक मतभेद हैं)।

क्षेमराज ने अभिनवगुप्त के ग्रंथों पर सरल शैली में भाष्य लिखे।
प्रमुख ग्रन्थ — प्रत्यभिज्ञा-हृदयम्, शिवसूत्रविमर्शिनी।
उन्होंने गूढ़ तत्त्वज्ञान को जन-सुलभ बनाने का अनुपम कार्य किया।

रस सिद्धांत: "रस" को चित्त की गहनतम भाव अवस्था बताकर कश्मीर ने भारतीय सौंदर्यशास्त्र को अनंत ऊँचाइयाँ दीं।

कला एवं स्थापत्य: कश्मीर की मूर्तिकला, मंदिर स्थापत्य (जैसे मार्तंड सूर्य मंदिर) भारतीय स्थापत्यकला का गौरवशाली उदाहरण है।

संगीत और नाट्य: तन्त्रसाधना, भक्ति, और सौंदर्य का अद्वितीय सम्मिलन देखने को मिलता है।

शिक्षा और ज्ञान परम्परा

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प्राचीन विश्वविद्यालय: शारदा पीठ को नालंदा और तक्षशिला के समकक्ष विद्या का प्रमुख केन्द्र माना गया।
दर्शन, तन्त्र, व्याकरण, साहित्य और नाट्यकला के गहन अध्ययन और शोध का केन्द्र रहा।
कश्मीर के ज्ञान को मध्यकाल में भी भारत के अन्य राज्यों में अत्यधिक सम्मान मिला।
कश्मीर शैवदर्शन, तन्त्र साधना, मन्त्र विज्ञान, योग और ध्यान की अनेक विधियों का जन्मस्थल है।
विज्ञान भैरव तन्त्र जैसे ग्रन्थों में जीवन के प्रत्येक क्षण में शिवतत्त्व की अनुभूति करने का मार्ग दिया गया।

सनातन जम्मू-कश्मीर केवल प्राकृतिक सौंदर्य का स्थल नहीं है, अपितु वह सनातन ज्ञान, विज्ञान, दर्शन, सौंदर्य, शिक्षा और अध्यात्म का गौरवशाली तीर्थ है।
यह भूमि आज भी ऋषियों की साधना, आचार्यों के चिन्तन, और शारदा की वाणी से आलोकित है।
भारतीय संस्कृति के पुनरुत्थान में कश्मीर का स्थान अत्यंत अद्वितीय और अविस्मरणीय है।
अतः कश्मीर को देखना केवल हिमालयी चोटियों को देखना नहीं है, बल्कि सनातन चेतना के शिखर को निहारना है।

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