कांग्रेस सांसद और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने केंद्र सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ योजना पर एक बार फिर तीखा हमला बोला है। उन्होंने इस महत्वाकांक्षी योजना को “झूठे वादों का पुलिंदा” करार देते हुए कहा कि यह देश में असली मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने में पूरी तरह से विफल रही है।
दिल्ली के नेहरू प्लेस – जो भारत का सबसे बड़ा इलेक्ट्रॉनिक्स बाज़ार माना जाता है – में स्थानीय तकनीशियनों से मुलाकात के बाद राहुल गांधी ने केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियों और युवाओं को रोजगार देने की विफलता पर गहरी चिंता जताई।
असली निर्माण नहीं, सिर्फ असेंबली हो रही है – राहुल गांधी
राहुल गांधी ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि भारत में मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का निर्माण नहीं, बल्कि केवल असेंबली हो रही है। उन्होंने कहा कि “मेक इन इंडिया ने फैक्ट्रियों के बूम का वादा किया था, लेकिन हकीकत में देश की मैन्युफैक्चरिंग जीडीपी का अनुपात घटकर 14 प्रतिशत पर आ गया है, जो एक ऐतिहासिक न्यूनतम है।”
राहुल गांधी ने केंद्र सरकार से तीखे सवाल पूछते हुए कहा: “अगर मेक इन इंडिया सफल है, तो आज युवा बेरोजगारी रिकॉर्ड ऊँचाई पर क्यों है? और चीन से आयात दोगुना क्यों हो गया है?” उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि युवाओं को नौकरी देने की बजाय सरकार सिर्फ नारेबाज़ी कर रही है। “मोदी जी को सिर्फ जुमले आते हैं, समाधान नहीं।”
नेहरू प्लेस में दो युवा टेक्निशियनों शिवम और सैफ से मुलाकात के बाद राहुल ने कहा कि देश के पास प्रतिभा की कोई कमी नहीं है, लेकिन मौजूदा आर्थिक मॉडल उन्हें अवसर देने में असफल है। उन्होंने इस उदाहरण के ज़रिए बताया कि लाखों युवाओं की काबिलियत और मेहनत को मौजूदा सरकार व्यवस्थित समर्थन नहीं दे पा रही।
PLI योजना हो रही है बंद?
राहुल गांधी ने यह भी दावा किया कि सरकार की बहुचर्चित PLI योजना (Production Linked Incentive) को चुपचाप बंद किया जा रहा है। उन्होंने कहा: “अगर हम खुद नहीं बनाएंगे, तो दूसरों से खरीदते रहेंगे। भारत को अब एक बाज़ार नहीं, बल्कि मैन्युफैक्चरिंग हब बनना होगा।” उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि सरकार को अब सिर्फ नारे नहीं, बल्कि ईमानदार सुधारों और वास्तविक वित्तीय समर्थन के ज़रिए घरेलू उत्पादकों को सशक्त बनाना चाहिए।
राहुल गांधी ने ‘मेक इन इंडिया’ को "सिर्फ एक राजनीतिक जुमला" बताते हुए कहा कि इसका जमीनी प्रभाव शून्य के बराबर है। उन्होंने कहा:“हम सिर्फ असेंबल करते हैं, आयात करते हैं, लेकिन निर्माण नहीं करते। इसका सीधा फायदा चीन उठा रहा है, और भारत की स्थानीय निर्माण क्षमता और नौकरियों पर इसका गंभीर असर पड़ा है।”