15 जुलाई 2025 को दोपहर 3 बज कर 1 मिनट का वक्त इतिहास के पन्नों में एक सुनहरे अध्याय के तौर पर दर्ज हो चुका है । यह वो वक्त था जब भारतीय अंतरिक्ष यात्री ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) से सफलतापूर्वक पृश्वी पर वापस लौट आए । 18 दिनों का उनका अंतरिक्ष मिशन स्पेसएक्स के GRACE यान के प्रशांत महासागर में सुरक्षित लैंडिंग के साथ संपन्न हुआ । यान अमेरिका के कैलिफोर्निया राज्य के सैन डिएगो तट के पास प्रशांत महासागर में उतरा ।
शुभांशु के साथ मिशन पर गए तीन अन्य अंतरिक्ष यात्री भी SpaceX के ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट से लौटे। यह ऐतिहासिक वापसी Axiom-4 मिशन के तहत हुई, जिसने न केवल वैज्ञानिक उपलब्धियों में बढ़ोतरी की बल्कि भारत के लिए गर्व का क्षण भी रचा ।
शुभांशु ने अंतरिक्ष में करीब 60 वैज्ञानिक प्रयोग किए
Axiom-4 मिशन में चार अंतरिक्ष यात्री थे । इनमें भारत के शुभांशु शुक्ला (पायलट), अमेरिका के पैगी व्हिटसन ( कमांडर – NASA की पूर्व अंतरिक्ष यात्री), पोलैंड की स्लावोस्ज उज़्नान्स्की-विल्निविस्की (मिशन स्पेशलिस्ट) और हंगरी के टिबोर कापू (मिशन स्पेशलिस्ट) शामिल हैं ।
शुभांशु अपने तीन अन्य साथियों के साथ 25 जून 2025 को फाल्कन 9 रॉकेट से अंतरिक्ष के लिए रवाना हुए थे और 26 जून को इटरनेशनल स्पेस स्टेशन से जुड़े थे । शुभांशु इस मिशन में पायलट की भूमिका निभा रहे थे और उन्होंने अंतरिक्ष में करीब 60 वैज्ञानिक प्रयोग किए । इनमें अंतरिक्ष में मांसपेशियों की कमजोरी पर अध्ययन, मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव और अंतरिक्ष में फसल उगाने के प्रयोग भी शामिल हैं ।
स्पेस स्टेशन से लौटने में 22-23 घंटे का समय लगा

अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन से लौटने में ड्रैगन कैप्सूल को लगभग 22-23 घंटे का समय लगा । धरती पर पहुंचने से पहले अंतरिक्ष यान को कई महत्वपूर्ण तकनीकी प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ा । इनमें से प्रमुख हैं -
डीऑर्बिट बर्न:
जब किसी अंतरिक्ष यान को धरती पर लाना होता है, तो उसे अपनी गति कम करनी होती है, ताकि वह पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश कर सके। इसके लिए छोटे रॉकेट (थ्रस्टर्स) एक खास दिशा में चलाए जाते हैं जिसे डी-ऑर्बिट बर्न कहा जाता है। यह प्रक्रिया 18 मिनट तक चली और इसके 34 मिनट बाद यान धरती पर स्प्लैशडाउन हुआ ।
वायुमंडल में प्रवेश:
जब यान वायुमंडल में 28,000 किमी/घंटा से प्रवेश करता है, तो घर्षण से बहुत तेज़ गर्मी पैदा होती है और तापमान 3,500 डिग्री फारेनहाइट (करीब 1,900 डिग्री सेल्सियस) तक पहुंच जाता है। इस दौरान कैप्सूल आग के गोले जैसा नजर आता है। लेकिन अंदर के यात्रियों को कोई गर्मी महसूस नहीं होती क्योंकि हीट शील्ड तापमान को 85°F (करीब 29°C) से ऊपर नहीं जाने देती।
स्प्लैशडाउन:

पैराशूट की मदद से सुरक्षित लैंडिंग हुई । सबसे पहले दो पैराशूट खुले, जिससे कैप्सूल की गति कम हुई। इसके बाद दो और पैराशूट खुले । इन 4 पैराशूट की मदद से कैप्सूल की स्पीड 24 किमी/घंटा तक लाई गई और इसी गति से यान समुंदर में गिरा । इसके बाद यात्रियों को कैप्सूल से बाहर निकालने के लिए रिकवरी टीम पहुंची और सभी यात्रियों को सुरक्षित बाहर निकाला ।
वापसी के बाद शुभांशु और उनकी टीम को मेडिकल जांच के लिए ले जाया गया । वे 10 दिनों तक आइसोलेशन में रहेंगे, ताकि उनका शरीर पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण में फिर से सामंजस्य बैठा सके । इस दौरान उनकी सेहत पर डॉक्टर्स लगातार नजर रखेंगे।
भारत के लिए गर्व का पल
शुभांशु शुक्ला का सफलतापूर्वक अंतरिक्ष मिशन को पूरा करना भारत के लिए लिए भी गर्व का विषय है । शुभांशु शुक्ला भारत के दूसरे अंतरिक्ष यात्री हैं । इनसे पहले स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा 1984 में सोवियत संघ के सोयुज टी-11 अंतरिक्ष यान से अंतरिक्ष में उड़ान भरी थी। इस तरह करीब 43 वर्षों के बाद कोई भारतीय अंतरिक्ष में गया है ।
शुभांशु अपने साथ भारत का तिरंगा और अपने बेटे का पसंदीदा खिलौना, एक हंस "जॉय" भी ले गए थे। अपने अंतरिक्ष मिशन के बारे में उन्होंने कहा, "अंतरिक्ष में भारत का झंडा लहराना मेरे लिए गर्व की बात है।"