कुछ लोगों से जब मुश्किलें टकराती है तो वे रुक जाते है और कुछ लोग उनसे आगे निकल कर मिसाल बन जाते हैं । ऐसा ही एक नाम है - सदानंदन मस्ते । एक शिक्षक, एक योद्धा, एक प्रेरणा…जो हमें याद दिलाते हैं कि असली ताकत शरीर में नहीं, सोच में होती है । आज व्हीलचेयर पर बैठकर भी वो खड़े हैं अपने उसूलों पर, अपने मिशन पर । अपनी लड़ाई में उन्होंने शिक्षा को हथियार बनाया है और समाज सेवा को रास्ता ।
केरल के त्रिशूर जिले के रहने वाले सदानंदन मस्ते वैसे तो एक शिक्षक है, लेकिन उनकी ज़िंदगी सिर्फ किताबों और कक्षाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज सेवा के क्षेत्र में भी उनका बड़ा योगदान है । सदानंदन मस्ते के इन्ही योगदानों को देखते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हे राज्य सभा के लिए नामित किया है ।
दोनों टांगें काट दी लेकिन हौसला नहीं तोड़ पाए
25 जनवरी 1994 को जब सदानंदन मस्ते की उम्र सिर्फ 30 साल थी, उनके साथ एक भयानक घटना घटी । कन्नूर में उनके घर के पास ही कुछ लोगों ने उन पर जानलेवा हमला किया और उनके दोनों पैर काट दिए । आरोप है कि यह हमला भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के कुछ कार्यकर्ताओं ने किया था । वजह थी सदानंदन मस्ते की विचारधारा और समाज में उनका बढ़ता प्रभाव जिसे वामपंथी अपने लिए खतरा मान रहे थे ।
लेकिन इस दर्दनाक हादसे के बावजूद सदानंदन मस्ते ने ज़िंदगी से हार नहीं मानी । विचारों की आज़ादी और अपनी सोच के लिए वो डटे रहे । उन्होंने फिर से उठकर समाज और शिक्षा की सेवा में खुद को झोंक दिया ।
सदानंदन मस्ते 1999 से सामाजिक विज्ञान के शिक्षक हैं। वो श्री दुर्गा विलासम हायर सेकेंडरी स्कूल, पेरमंगलम में पढ़ाते हैं। उन्होंने गुवहाटी विश्वविद्यालय से बीकॉम और कालीकट विश्वविद्यालय से बीएड किया है । शिक्षक होने के साथ-साथ मस्ते नेशनल टीचर्स यूनियन के उपाध्यक्ष और युनियन की मासिक पत्रिका 'देशीय अध्यापक वर्था' के संपादक भी हैं ।
सदानंदन मस्ते की पत्नी वनीता रानी भी शिक्षिका हैं, और उनकी बेटी यमुना भारती बीटेक की पढ़ाई कर रही हैं। पूरा परिवार शिक्षा और सेवा के रास्ते पर चल रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी ने भी की तारीफ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सदानंदन मस्ते की सराहना की है । उन्होंने कहा कि, सदानंदन मस्ते का जीवन साहस और अन्याय के सामने न झुकने की मिसाल है। शिक्षा और समाज सेवा के क्षेत्र में उनका योगदान अतुलनीय है। युवा सशक्तिकरण के प्रति उनका समर्पण प्रेरणादायक है ।
एक आवाज जो कहती है हिंसा नहीं, संवाद चाहिए
राष्ट्रवादी विचारधारा से प्रभावित सदानंदन मस्ते हमेशा से राजनीतिक हिंसा के खिलाफ खड़े रहे हैं। उनका कहना है कि विचारधारा के स्तर पर मतभेद हो सकते हैं, लेकिन समाज में शांति सबसे ज़रूरी है। मस्ते भारतीय विचार केंद्र से भी जुड़े हैं । यह एक ऐसा संगठन है जो केरल में विचारों और समाज सेवा के क्षेत्र में काम करता है।
सदानंदन मस्ते का राज्यसभा में नामांकन सिर्फ एक व्यक्ति का सम्मान भर नहीं है, बल्कि ये एक संदेश भी है समाज और उसके लिए जमीनी स्तर पर नि:स्वार्थ भाव से काम करने वाले लोगों के लिए कि राष्ट्र को नीति निर्धारण में भी उनकी भूमिका की जरूरत है ।