उत्तर प्रदेश में दलिल वोट के लिए लड़ाई काफी दिलचस्प दौर में पहुंचती दिख रही है । जबसे बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी से निकाला है, तबसे इसको लेकर रस्साकशी काफी तेज हो गई है ।
दरअसल बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम ने तो अपना उत्तराधिकारी समय से पहले ही चुन लिया था, लेकिन शायद मायावती इसमें चूक गईं । कहा जा रहा है कि उनकी इस चूक का फायदा चंद्रशेखर 'रावण' ने उठा लिया है । मायावती भी इस बात को समझ चुकी हैं और संभवत: इसीलिए भतीजे आकाश आनंद को किनारे बैठाकर खुद मोर्चा संभाल लिया है । लेकिन तब भी चंद्रशेखर उन पर भारी पड़ते दिख रहे है ।
क्या मायावती के लिए भूमिका बदलने का वक्त आ गया है ?
उत्तर प्रदेश में रावण का नाम अब दलित समाज की जुबान पर चढ़ चुका है । हालांकि वो मायावती का सम्मान तो अब भी करते हैं, लेकिन दलित समाज के बीच से ही इस तरह की आवाजें भी उठने लगी है कि मायावती के लिए अब भूमिका बदलने का वक़्त आ गया है । उनका कहना है कि अब आंदोलन की अगुवाई के लिए दलित समाज भी नया चेहरा चाहता है , बल्कि वो मायावती को मार्गदर्शक मंडल में देखना चाहते हैं ।
दलित समाज में मायावती के लिए अब भी अत्यधिक सम्मान
यूपी में दलितों की आबादी करीब 22 फीसदी है । हालांकि अलग-अलग पार्टियों की सेंधमारी की वजह से ये वोटबैंक बंट जाता है , लेकिन दलित समाज के ज्यादातर लोगों दिल में मायावती के लिए सम्मान है । आजाद समाज पार्टी ( कांशीराम ) के संस्थापक चंद्रशेखर इस बात को भली-भांति जानते हैं । इसलिए वो मायावती के फैसलों पर तो सवाल उठाते हैं, परन्तु उनपर कभी निजी हमला नहीं करते ।
आजादी के बाद दलित समाज कांग्रेस के साथ था लेकिन कांशीराम के दलित आंदोलन ने इनका रुख बहुजन समाज पार्टी की ओर मोड़ दिया । इसी के दम पर मायावती 4 बार यूपी की सीएम भी बनीं ।
2007 में 30.4 प्रतिशत वोट शेयर के साथ उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीएसपी ने पूर्ण बहुमत हासिल किया था । 2022 आते-आते मायावती की घटती लोकप्रियता और दलित वोट के बंटवारे से वोटशेयर 12.7 प्रतिशत तक पहुंच गया । 2024 के लोकसभा चुनाव में 9.39 प्रतिशत का वोटशेयर रह गया और मायावती को एक भी सीट नहीं मिली ।
संगठनात्मक कमजोरी ने बीएसपी को नुकसान पहुंचाया
मायावती की “सर्वजन” रणनीति और गैर-दलितों से गठजोड़ ने शुरुआत में सफलता दी, लेकिन बाद में जाटव आधार से दूरी और संगठनात्मक कमजोरी ने बीएसपी को काफी नुकसान पहुंचाया । पार्टी से आम लोगों की दूरी बढ़ती चली गई ।
एक ओर चंद्रशेखर आजाद इसी खाली जगह को भरने की कोशिश कर रहे है , तो दूसरी ओर पीडीए यानि पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक गठजोड़ की रणनीति के जरिए अखिलेश यादव दलित वोटों को अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रहे हैं । हालांकि अखिलेश पर दलितों का ज्यादा भरोसा नहीं दिखता है ।
उधर 2024 के लोकसभा चुनाव में नगीना से 51.19 प्रतिशत वोट हासिल कर बड़ी जीत दर्ज करने के बाद से चंद्रशेखर आज़ाद का कद काफी बढ़ा है और वो अपनी भीम आर्मी के जरिए जोर-शोर से दलितों के मुद्दे उठाकर दिनोंदिन मायावती को हाशिए पर धकेलने की कोशिश कर रहे हैं ।