Masi Magam 2025: कब है मासी मगम, जानें शुभ मुहूर्त और तिथि और कथा

Date: 2025-02-28
news-banner

 मासी मागम तमिल हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसे 'मासी माकम' के नाम से भी जाना जाता है। यह हर साल तमिल महीने मासी (फरवरी-मार्च) की मागम नक्षत्र के दिन मनाया जाता है। मासी मागम पर अलग-अलग तरह के अनुष्ठान और पूजा आदि करने की परंपरा है। इस दिन भक्तगण समुद्र, नदी या पवित्र सरोवर में स्नान कर भगवान शिव, मुरुगन और अन्य देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन पवित्र नदियों या समुद्र में स्नान करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है साथ ही जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का भी आगमन होता है। 

मासी मागम कब है?

तमिल पंचांग के मुताबिक, मासी मागम त्यौहार हर साल तमिल माह (फरवरी-मार्च) 'मासी' के 'माकम नक्षत्र' में मनाया जाता है।  वैसे तो माकम नक्षत्र पूर्णिमा तिथि पर पड़ता है, लेकिन हर साल ऐसा नहीं होता है। इसलिए ऐसा कहना उचित होगा कि मासी मागम पर्व पूर्णिमा तिथि पर नहीं, बल्कि 'मघा नक्षत्र' पर आधारित होता है। माकम नक्षत्र को 'मागम नक्षत्र' एवं 'मघा नक्षत्र' भी कहा जाता है। बता दें कि साल 2025 में ये पर्व बुधवार, 12 मार्च को पड़ रहा है। 


मासी मागम बुधवार, 12 मार्च 2025 को

मागम् नक्षत्रम् प्रारम्भ - 12 मार्च, 2025 को सुबह 02:15 बजे

मागम् नक्षत्रम् समाप्त - 13 मार्च, 2025 को सुबह 04:05 बजे


मासी मागम का महत्व

 मासी मागम के दिन साल का सबसे शक्तिशाली 'पूर्ण चंद्र दिवस' होता है। बारह वर्षों में एक बार, जब मासी मागम के दिन बृहस्पति सिंह राशि में प्रवेश करते हैं, तब यह पर्व मासी मागम के रूप में मनाया जाता है। 12 साल में एक बार आने वाला 'महा मागम' का ये संयोग अत्यंत शुभ माना जाता है। बता दें कि मासी मागम पर्व के दिन समुद्र के तट पर लाखों की संख्या में लोग एकत्रित होते हैं। इस दिन मन्दिरों की मूर्तियों को एक शोभायात्रा के साथ समुद्र के किनारे स्नान के लिये ले जाया जाता है। इसके बाद देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना होती है साथ ही कई अनुष्ठान भी किए जाते हैं। शोभायात्रा में शामिल भक्त अपने पापों से मुक्ति के लिए पवित्र जल में स्नान करते हैं। इसके बाद फिर देवी-देवताओं की मूर्तियों को वापस झांकियों में मंदिर ले जाया जाता है। इस दिन मंदिरों में गज पूजा (हाथी की पूजा) और अश्व पूजा (घोड़े की पूजा) करने की भी परंपरा है।


मासी मागम से जुड़ी कथा

मासी मागम से जुड़ी एक कथा है, प्राचीन काल में तिरुवन्नामलाई के एक राजा हुआ करते थे। वो भगवान शंकर के परम भक्त थे। राजा का जीवन समस्त सुख-सुविधाओं और धन-धान्य से संपन्न था, बस दुःख इस बात का था कि उनकी कोई संतान नहीं थी।

राजा को सदैव इस बात की चिंता रहती थी कि मरने के बाद उनकी अंत्येष्टि क्रिया किसके द्वारा की जायेगी। ऐसे में भगवान शिव ने उनके मन की चिंता समझकर वचन दिया- हे राजन्! निराशा त्याग दो! तुम्हारी मृत्यु के उपरांत मैं स्वयं तुम्हारा अंतिम संस्कार करूंगा।

कुछ समय बाद मासी मागम के दिन राजा की मृत्यु हो गई, तब अपने दिए हुए वचन के अनुसार स्वयं शिव-शम्भू ने उनकी अंत्येष्टि क्रिया की। इसके साथ ही ये आशीर्वाद दिया कि जो भक्त 'मासी मागम' के दिन किसी पवित्र नदी में स्नान करेंगे, उन्हें मरणोपरांत मोक्ष की प्राप्ति होगी।

मासी मागम से संबंधित एक और कथा भी प्रचलित है, जिसके अनुसार- एक बार कुछ ऋषि-मुनि अपने ज्ञान और विद्या पर अभिमान करने लगे थे। उन्हें ऐसा लगने लगा कि, वो सर्वज्ञाता हैं, और ऐसा समझकर मुनिगण देवताओं की उपेक्षा करने लगे। उन्होंने निर्णय किया कि अब वो ही मनुष्यों का मार्गदर्शन करेंगे, ऐसे में देवी-देवताओं की कोई आवश्यकता नहीं है। ऋषियों के इस विचार से जब भगवान शंकर अवगत हुए, तो उन्हें उन सब पर बहुत क्रोध आया और उन्होंने निश्चय किया कि ऋषियों को उनके अभिमान का एहसास अवश्य कराएंगे।

इस प्रकार भगवान शिव एक दिन भिक्षुक का रूप धारण कर ऋषियों के सामने प्रकट हुए। अभिमान में अंधे हो चुके ऋषि उन्हें पहचान न सके और भगवान को शैतान मान उनका वध करने के लिए एक पागल हाथी भेजा। जैसे ही हाथी  भगवान शिव पर हमला करने के लिए आगे बढ़ा, कि तभी वो अंतर्ध्यान हो गए।

लेकिन पुनः प्रकट होकर भगवान शिव ने उस हाथी का वध कर दिया और उसकी खाल धारण कर ली। ये सब देखकर ऋषियों को अपनी भूल का आभास हुआ और उन सबने अभिमानवश किए गए देवताओं के अपमान के लिए भगवान शिव से क्षमा-याचना की। इसी कारण इस दिन को 'गज संहार' के रूप में भी मनाया जाता है।