बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया है, तब से उत्तर प्रदेश की सियासत में चर्चा का बाजार काफी गरम है । मायावती ने जिस तरह से आकाश को चलता किया है उसको लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं । हालांकि मायावती ने पूरे घटनाक्रम के लिए आकाश आनंद से ससुर अशोक सिद्धार्थ को सीधे तौर से जिम्मेदार ठहराया है । लेकिन क्या बात इतनी भर है या इनसाइड स्टोरी कुछ और ही है ?
मायावती के संकेत को नहीं समझ पाए आकाश ?
आकाश आनंद के पर कतरने से पहले मायावती ने पिछले महीने की 16 तारीख को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट किया था । उसमें उन्होने लिखा था - "बसपा का वास्तविक उत्तराधिकारी वही होगा, जो कांशीराम की तरह हर दुख-तकलीफ उठाकर पार्टी के लिए आखिरी सांस तक जी-जान लगाकर लड़े। पार्टी मूवमेंट को आगे बढ़ाता रहे । "
क्या यह एक सामान्य पोस्ट था या फिर इसके जरिए बसपा सुप्रीमो भतीजे आकाश को कोई संदेश देने की कोशिश कर रही थी जिसे वह समझ नहीं पाए या फिर समझते हुए भी इसकी अनदेखी कर दी ?
दरअसल इस बात को लेकर चर्चा तब शुरू हुई जब 2 मार्च 2025 को मायावती ने लखनऊ में बसपा कार्यकर्ताओं के साथ बैठक के दौरान आकाश आनंद को पार्टी के सभी पदों से हटाने का फरमान सुनाया और कहा कि अब अपने जीते जी किसी को उत्तराधिकारी नहीं बनाएंगी । इस घोषणा के 24 घंटों के भीतर ही पार्टी से भी निकालने की घोषणा कर दी ।
आकाश के ससुर अशोक सिद्धार्थ को बताया जिम्मेदार
मायावती ने पूरे घटनाक्रम के लिए सीधे तौर पर आकाश आनंद के ससुर अशोक सिद्धार्थ को जिम्मेदार ठहराया । अशोक सिद्धार्थ को वो पहले ही पार्टी से बर्खास्त कर चुकी हैं । मायावती ने अशोक सिद्धार्थ पर बेहद गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि वह गुटबाजी को बढ़ावा देकर पार्टी को कमजोर करने की साजिश रच रहे थे ।
मायावती ने अशोक पर आकाश आनंद का राजनैतिक करियर बर्बाद करने का भी आरोप लगाया है । उन्होंने कहा कि आकाश आनंद पूरी तरह से अपनी पत्नी प्रज्ञा , सास और ससुर के प्रभाव में हैं, जो पार्टी हित में नहीं है ।
कौन है अशोक सिद्धार्थ और मायावती के करीब कैसे आए ?
अशोक सिद्धार्थ आकाश आनंद के ससुर तो हैं ही, बसपा से निकाले जाने से पहले वो पार्टी के कद्दावर नेता भी थे । ऐसा नहीं था कि यह हैसियत उन्हें सिर्फ मायावती परिवार में रिश्तेदारी की वजह से मिली थी ।
पेशे से ऑंखों के डॉक्टर अशोक सिद्धार्थ के पिता कांशीराम के काफी करीबी माने जाते थे । लेकिन बताया जाता है कि उन्हें राजनीति में मायावती लेकर आई थीं । मायावती के कहने पर ही अशोक सिद्धार्थ नौकरी से इस्तीफा देकर बसपा में शामिल हुए थे ।
इसके बाद संगठन से होते हुए वह एमएलसी रहे और राज्यसभा तक पहुंचे । उन्हें आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना, और ओडिशा में पार्टी का प्रभारी भी बनाया गया । अशोक सिद्धार्थ मायावती के भाई आनंद कुमार के काफी करीबी मित्र भी रहे हैं ।
क्या आकाश की लोकप्रियता और महत्वाकांक्षा से डर गईं बहनजी ?
मायावती ने जब आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया उसके बाद से वो काफी सक्रिय हो गए । बताया जाता है कि आकाश पार्टी को नई सोच और नए तरीके से संचालित करना चाहते थे । अपनी सोच और कार्यशैली से आकाश बसपा के युवा मतदाताओं के बीच काफी तेजी से लोकप्रिय हो रहे थे ।
दरअसल मायावती की निष्क्रियता से निराश पार्टी का युवा समर्थक निराश हो चला था , लेकिन आकाश में उसे नई संभावना दिखी । सूत्रों की मानें तो इससे पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं की परेशानी बढ़ने लगी और उन्होंने आकाश के खिलाफ लामबंदी शुरू कर दी ।
उधर आकाश जितनी जल्दबाजी में दिख रहे थे उससे मायावती सतर्क हो गईं । तो क्या मायावती को इस बात का अंदेशा होने लगा था कि कहीं आकाश की नजर उनकी कुर्सी पर तो नहीं है ?
दरअसल मायावती ने पार्टी में किसी भी शख्स को अपने आसपास भी खड़ा नहीं होने दिया । जिस किसी ने भी अपना कद बढ़ाने की कोशिश की उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया गया ।
क्या आशोक सिद्धार्थ अपने दामाद के लिए फिल्डिंग सेट करने में लगे थे ?
सियासी गलियारों में इस कहानी का एक और एंगल तैर रहा है । कई लोगों का यह भी मानना है कि अशोक सिद्धार्थ भी काफी महत्वकांक्षी हैं । अपनी महत्वकांक्षा को पूरा करने के लिए वो दामाद को सीढ़ी के रुप में इस्तेमाल कर रहे थे । जैसा कि 'ठुकरा के मेरा प्यार' वेबसीरीज में नेताजी कर रहे थे.
अशोक सिद्धार्थ चाहते थे कि जल्द से जल्द आकाश के हाथ में पार्टी की पूरी कमान आ जाए । मायावती का कहना है कि आकाश को उन लोगों ने पूरी तरह से अपने प्रभाव में ले लिया था । इसलिए मायावती ने पार्टी से सबसे पहले आशोक सिद्धार्थ का ही पत्ता साफ किया ।
मायावती दवाब में ले रही इस तरह के फैसले ?
परिवार और पार्टी की ये कहानी एक बाहरी एंगल की ओर भी इशारा कर रही है । बसपा की राजनीति पर करीब से नजर रखने वाले कई जानकार इसे किसी बाहरी दबाव में लिया गया फैसला मानते हैं । उनका कहना है कि मायावती के पुराने तेवर अब नहीं दिखते । उनकी राजनीतिक सक्रियता भी काफी हो गई है । उनपर अपनी पार्टी की कीमत पर बीजेपी को समर्थन देने के आरोप भी लगते रहे हैं ।
इन आरोपों को पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान तब और बल मिला जब बीजेपी पर तीखे प्रहार करने पर उन्होंने भतीजे आकाश से यह कहते हुए सारे अधिकार वापस ले लिए कि वो अभी अपरिपक्व हैं । दरअसल कई लोगों का ऐसा मानना है कि बीजेपी नहीं चाहती कि मायावती पहले की तरह सक्रिय हों और आनंद अपनी बुआ कि निष्क्रिय राजनीति में जब न तब तड़का लगाने की जुर्रत करते रहते हैं । ऐसे में दलित वोटबैंक से बीएसपी का नाता तोड़ने वाली स्कीम कारगर नहीं हो सकती थी ।