होलिका दहन से पहले क्यों मनाई जाती है नरसिंह द्वादशी, क्या है इसका धार्मिक महत्व और कथा, जानिए यहां

Date: 2025-02-27
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शास्त्रों के अनुसार फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन ही भगवान विष्णु 'नरसिंह स्वरूप' में अवतरित हुए थे। यानि कि हर वर्ष होली से लगभग 3-4 दिन पहले द्वादशी तिथि पर 'नरसिंह द्वादशी' मनाई जाती है। इस साल नरसिंह द्वादशी व्रत 2025 की तिथि 10 मार्च है।

 यह भगवान विष्णु से जुड़े शालिग्राम पत्थरों से जुड़ा व्रत है। इस दिन हिंदू भगवान नरसिंह की पूजा की जाती है और कुछ लोग सूर्योदय से सूर्यास्त तक उपवास रखते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन उपवास रखने से पापों से मुक्ति मिलती है। इस दिन को गोविंदा द्वादशी के रूप में भी मनाया जाता है।


नरसिंह द्वादशी का धार्मिक महत्व

नृसिंह द्वादशी को दुख और तकलीफों से बचने होलिका दहन से पहले भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार को पूजने का विधान है। भगवान नृसिंह की पूजा से कुंडली और हर तरह के दोष खत्म हो जाते हैं। दुश्मनों पर जीत मिलती है और बीमारियां दूर होती हैं। 

भगवान विष्णु के दस अवतारों में एक भगवान विष्णु के दस मुख्य अवतारों में से एक नृसिंह रूप है। ये भगवान विष्णु का रोद्र रूप है। इस अवतार में श्रीहरि विष्णु जी ने आधा मनुष्य और आधा शेर का रूप धारण करके राक्षसों के राजा हिरण्यकश्यप को मारा। फिर इन्होंने प्रह्लालाद को अपनी गोद में बैठाकर दुलार किया। 

भगवान विष्णु के इस स्वरूप ने प्रहलाद को भी वरदान दिया कि, जो कोई इस दिन भगवान नृसिंह का स्मरण करते हुए, श्रद्धा से उनका व्रत और पूजन करेगा उसकी मनोकामनाएं पूरी होंगी। इसके साथ ही उसके रोग, शोक और दोष भी खत्म हो जाएंगे।


नरसिंह द्वादशी व्रत कथा

प्रहलाद के पिता हिरण्यकश्यप ने कठिन तपस्या कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और उनसे एक वरदान मांगा कि उसे न कोई मनुष्य मार सके, न ही पशु, न ही वो दिन में मारा जाए और न ही रात में, न ही अस्त्र के प्रहार से और न ही शस्त्र से, न ही घर के अंदर मारा जा सके और न ही घर के बाहर। 

इस वरदान को प्राप्त करने के बाद वो स्वयं को अमर समझने लगा। मासूम लोगों को प्रताड़ित करने लगा और खुद को भगवान समझने लगा। उसने अपने राज्य में भगवान विष्णु की पूजा पर रोक लगा दी, लेकिन उसका पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का बड़ा भक्त था। उसके कई बार रोकने पर भी प्रहलाद ने भगवान की पूजा करना नहीं छोड़ी। 

इससे नाराज हिरण्यकश्यम ने प्रहलाद को बहुत प्रताड़ित किया। कई बार उसे मारने का प्रयास किया, लेकिन हर बार प्रहलाद बच गया। उसने अपनी बहन होलिका के साथ प्रहलाद को आग में भी बैठाया क्योंकि होलिका को आग से न जलने का वरदान प्राप्त था, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रहलाद बच गया और होलिका मर गई। 


भगवान विष्णु ने रौद्र रूप में लिया था अवतार

अंतिम प्रयास में हिरण्यकश्यम ने लोहे के एक खंभे को गर्म कर प्रहलाद को उसे गले लगाने को कहा। तभी उस खंभे को चीरते हुए नरसिंह भगवान का उग्र रूप प्रकट हुआ। उन्होंने हिरण्यकश्यप को महल के प्रवेशद्वार की चौखट पर, जो न घर के बाहर था न भीतर, गोधूलि बेला में, जब न दिन था न रात, नरसिंह रूप जो न मनुष्य था, न पशु। भगवान नरसिंह ने अपने तेज नाखूनों, जो न शस्त्र थे, न अस्त्र, से उसका वध किया और प्रहलाद को जीवनदान दिया।